Tuesday, October 8, 2019

अब आसान हुआ वाहनों का इंश्योरेंस रिन्यू कराना

अब आसान हुआ वाहनों का इंश्योरेंस रिन्यू कराना

नवभारत टाइम्स | Updated: 06 Oct 2019, 11:08 AM

अब वाहनों का इंश्योरेंस रिन्यू कराना आसान हो गया। नए मोटर वीइकल कानून के लागू होने के बाद इंश्योरेंस रिन्यू न कराना आपके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

हाइलाइट्स:

वाहन इंश्योरेंस रिन्यू कराना अब पहले की अपेक्षा आसान हुआ, नए मोटर वीइकल ऐक्ट के लागू होने के बाद बढ़ गई है पेनल्टी की रकम, अगर आपने बीमा रिन्यू नहीं कराया तो लग सकता है बड़ा झटका, अब थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कवर अनिवार्य और पहली बार इसके बगैर पकड़े जाने पर 2,000 रुपये का जुर्माना !!!

अक्सर इंश्योरेंस को रिन्यू करवाना हम भूल जाते हैं और बिना वैलिड इंश्योरेंस पेपर के गाड़ी चलाते रहते हैं। ऐसा करना अब आपको महंगा पड़ सकता है। वैसे भी अब इंश्योरेंस रिन्यू करवाना आसान हो गया है तो बेहतर यही है कि आप समय से उसे रिन्यू करवा लें। नए मोटर वीइकल्स ऐक्ट के तहत भारी जुर्माने की वजह से अब आप गाड़ी के इंश्योरेंस को इग्नोर नहीं कर सकते। अब थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कवर अनिवार्य है और पहली बार इसके बगैर पकड़े जाने पर 2,000 रुपये का जुर्माना लगता है। यही गलती दोहराने पर 4,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। बेशक कई दोपहिया गाड़ियों के मामले में जुर्माने के मुकाबले प्रीमियम की रकम कम है। ऐसे में समझदारी तो यही है कि आप इंश्योरेंस जरूर करवा लें। आसान है रिन्यू करवाना

1. अब थर्ड-पार्टी लायबिलिटी कॉम्पोनेंट को रिन्यू करवाना आसान हो गया है। इस तरह के मामले में कोई जांच-पड़ताल नहीं होती है और पॉलिसी तत्काल जारी कर दी जाती है।

2. लैप्स या ब्रेक-इन, कॉम्प्रिहेंसिव कवर के डैमेज एलिमेंट को रिन्यू करवाने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। अब इसे भी आसान बना दिया गया है।

3. पहले पॉलिसी के लिए इंश्योरेंस कंपनियों के एजेंट ग्राहक के पास जाकर गाड़ियों की जांच करते थे। इसमें काफी वक्त लगता था। लेकिन अब कई बीमाकंपनियां 90 दिनों से अधिक का ब्रेक न होने पर गाड़ी की जांच की जरूरत नहीं समझतीं और यह प्रक्रिया आसानी से निपट जाती है।

4. पॉलिसी लैप्स होने के 90 दिनों के भीतर रिन्यू करने से एक और फायदा होता है कि आप टोटल नो-क्लेम बोनस (NCB) के हकदार होते हैं। ब्रेक जितना लंबा होगा, प्रीमियम अधिक देना होगा।

5. कुछ बीमा कंपनियां जीरो डेप्रिसिएशन कवर या इंजन प्रोटेक्ट कवर जैसे उपयोगी ऐड-ऑन को उन गाड़ियों तक नहीं बढ़ाती हैं, जो लंबी अवधि तक बगैर कवर के होते हैं।

6. कुछ बीमा कंपनियां सेल्फ-इंसेप्शन मॉडल पर भी काम करती है। इनका इंश्योरेंस लेने वाले ग्राहक बीमा कंपनियों के आधिकारिक ऐप या लिंक के माध्यम से जांच के लिए अपनी गाड़ी की विडियो अपलोड करते हैं।

सावधानी है जरूरी

1. इंश्योरेंस की शर्तों को हमेशा सावधानी से पढ़ें। छोटी-से-छोटी बातों का भी स्पष्टीकरण पूछें।

2. अगर आपकी गाड़ी में चार से अधिक डेंट हैं तो पॉलिसी प्रपोजल रिजेक्ट भी हो सकता है। इसी तरह से, एक बड़े डेंट या विंडशील्ड में एक क्रैक से भी पॉलिसी जारी किए जाने की संभावना घट सकती है।

3. इंस्पेक्शन के वक्त अगर पहले से कोई डैमेज गाड़ी में होता है तो उसे नई पॉलिसी में कवर नहीं किया जाता। इसलिए पॉलिसी खरीदते वक्त गाड़ी के पिक्चर या विडियो के जरिये उसकी कंडिशन का रेकॉर्ड रखना चाहिए।

4. एक बार पॉलिसी इश्यू होने पर शर्तें कमोबेश रेग्युलर पॉलिसी जैसी होती हैं।

5. यह जरूर देखिए कि पॉलिसी किस तारीख से लागू हो रही है। इसमें देरी होने पर आपका नुकसान हो सकता है।

6. ब्रेक-इन के मामले में थर्ड पार्टी कवर पॉलिसी T+1 या T+3 आधार पर (ट्रांजैक्शन के एक या तीन दिन बाद) लागू होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि ताकि कोई हादसे के बाद पॉलिसी न खरीद ले। इंश्योरेंस कंपनी के लिए यह फायदेमंद हो सकता है, लेकिन आपका नुकसान।

7. किसी भी परेशानी से बचने के लिए लैप्स होने की गलती न दोहराएं। इससे न सिर्फ ऊंची पेनल्टी देनी पड़ती है, बल्कि किसी को नुकसान होता है तो मुआवजे पर भी असर पड़ सकता है।

किसी भी इंश्योरेंस के लिए संपर्क करें:-
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